10 साल की उम्र तक आंखों की रोशनी खो देते हैं लाखों बच्चे, जाने क्यों

10 साल की उम्र तक आंखों की रोशनी खो देते हैं लाखों बच्चे, जाने क्यों

डॉ. संजय चौधरी

आंखें कुदरत का अनमोल वरदान है। अगर आंखें न होती तो इस दुनिया में क्या रखा होता। इस दुनिया की सारी खूबसूरती हमारी आंखों की बदौलत है, जो खुद इतनी खूबसूरत हो सकती हैं कि किसी पर जादू कर दें, लेकिन कई बार असावधानी और आंखों के प्रति हमारी लापरवाही कारण आंखें इतनी रुग्ण हो जाती हैं कि उन पर आधुनिक से आधुनिक चिकित्सा का जादू भी नहीं चल नहीं पाता है और हम दृष्टि से वंचित हो जाते हैं।

बच्चों में आंखों की समस्या-

राष्ट्रीय अंधता निवारण सोसायटी की ओर से किये गए सर्वेक्षण में करीब 25 प्रतिशत बच्चों को विभिन्न आंखों की समस्याओं एवं दृष्टि दोषों से ग्रस्त से पाया गया। वर्ननांक (रिफ्रेक्टिव) दोष सबसे सामान्य नेत्र समस्या है और नेत्र दोषों से ग्रस्त करीब 60 प्रतिशत मरीजों में यही दोष पाया गया है। सामान्य दृष्टि क्षमता बच्चों के  संपूर्ण विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभती हैं, लेकिन विभिन्न दृष्टि दोषों एवं अंधता के कारण लाखों बच्चे 10 साल की उम्र तक पहुंचने से पहले ही दृष्टि से महरूम हो जाते हैं। इन बच्चों को नेत्र हीनता एवं दृष्टि दोषों से बचाया जा सकता है, बशर्ते माता-पिता एवं शिक्षक जागरूक हों तथा बच्चों के प्रति सावधानी बरतें।

दृष्टि दोषों की समय पूर्व पहचान-

कई बच्चे या तो जन्म से ही या बहुत कम उम्र में ही आंखों की समस्याओं से ग्रस्त होते हैं , लेकिन माता-पिता के जागरूक नहीं होने के कारण इन खामियों का समय पर पता नहीं चलता। अगर समय से ही बच्चों में दृष्टि दोष का पता चल जाए तो उसका समुचित इलाज संभव है, इसलिए माता-पिता को बच्चों की गतविधियों एवं उनकी नेत्र क्षमता के विकास तरफ जन्म के बाद से ही ध्यान देना चाहिए।

जन्म से तीन माह तक दृष्टि विकास-

आम तौर पर नवजात शिशु तीन माह की उम्र तक रोशनी से आकर्षित नहीं होता है। तीन से चार महीने की उम्र के बाद बच्चे रोशनी की तरफ आकर्षित होते हैं। उसके बाद बच्चा अपनी आँखों को प्रकाश की तरफ क्रेंद्रित करना शुरू करता है। अगर बच्चा ऐसा नहीं करता तो यह उसकी दृष्टि में कोई खराबी होने का सूचक हो सकता है। जन्मजात दृष्टि दोष से ग्रस्त बच्चा रोशनी में बेचैनी महसूस करता है या उसकी आँखों से पानी आ सकता है।

छह माह से एक साल तक दृष्टि विकास-

छह माह से लेकर एक साल की उम्र तक के बच्चे वस्तुओं में फर्क करने में समर्थ होते हैं। वे हाथों के बीच समन्वय रखने एवं उनकी गतविधियों को नियंत्रित करने में भी सक्षम हो जाते हैं और अपने दृष्टि क्षेत्र में पड़ने वली वस्तुओं को उठा सकते हैं। 10 माह की उम्र का बच्चा अपनी तर्जनी ऊंगली तथा अंगूठे से किसी  वास्तु को सफाई से उठा लेता है। इस उम्र का बच्चा अगर तेज रोशनी में अपनी एक आँख बंद करें, जमीन पर खिसकने के दौरान अगर सामने पड़ी वस्तुओं से टकराए, अपनी आँखों को बहुत अधिक घुमाए और उसके दृष्टि क्षेत्र में पड़ी चमकदार एवं रंगीन वस्तुओं को वह देख नहीं पाए या उसकी तरफ ध्यान नही दें, तब बच्चे की आँखों की पूरी जाँच करनी चाहिए। एक से तीन साल की उम्र तक का बच्चा बहुत सक्रीय हो जाता है, आस-पास की चीज़ों में दिलचस्पी लेने लगता है और तस्वीरों की तरफ आकर्षित होता है। अगर बच्चा चित्र वाली किताबों को अपनी आँखों से या तो बहुत सटाकर रखे या बहुत दूर रखे, टेलीविजन या दूर की वस्तुओं को देखते समय अपनी आँखें सिकोड़े, चलते समय आस-पास रखी वस्तुओं से टकराए या कम रोशनी में उसे वस्तुओं को खोजने में दिक्कत हो, तब   उसकी आँखों की जाँच करानी चाहिए।

तीन से पांच साल तक दृष्टि विकास-

तीन से पांच साल या इससे अधिक उम्र के बच्चों में दृष्टि दोष का पता लगाना आसान हो जाता है। इस उम्र में बच्चा खेल कूद में दिलचस्पी नहीं ले या लोगों से मिलने जुलने से कतराए, स्कूल में पढ़ाई में पिछड़ जाए, आँखें टिकाकार किये जाने वाले कामों में कम दिलचस्पी दिखाए, बच्चा अगर सिर दर्द, आँखों में दर्द, आँखों में पानी आने, देर तक आँखें बंद रखने अथवा वस्तुओं के साफ नजर नहीं आने, क्लास में पिछली सीट में बैठने पर ब्लैक बोर्ड को ठीक से नहीं देख पाने, रंगों को ठीक से नहीं पहचान पाने आदि की शिकायत करे तो उसे किसी नेत्र चिकित्सक को दिखाना चाहिए।

 

(लेखक दिल्‍ली के जाने माने फीजिशियन और जीवनशैली रोग विशेषज्ञ हैं। ये आलेख उनकी किताब फैमिली हेल्‍थ गाइड से साभार लिया गया है। प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित ये किताब hindibooks.org से मंगवाई जा सकती है)

 

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